Tuesday, March 10, 2009

बाल-कविता प्रतियोगिता आयोजित

बीरगंज १० जनवरी । विश्व हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य मे नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद् वीरगंज नें बाल-कविता प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें विभिन्न सरकारी तथा गैरसरकारी विद्यालयों के बच्चों ने सहोत्साह भाग लिया । इस प्रतियोगिता के लिए परिषद् ने "हिमालय" और "बचपन" दो शीर्षक दिये थे। इस प्रतियोगिता में सुरम्या शुभम ने "बचपन", राजेश्वरी चौधरी ने "हिमालय" और समशुल हक समानी ने "बचपन" शीर्षक कविता प्रस्तुत कर क्रमशः प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार प्राप्त किए, जबकि सान्त्वना पुरस्कार प्राप्त करने वालो में नितिश कुमार तुलस्यान, सन्तोष ठाकुर, शिवानी शाह, सुनीता कुमारी ठाकुर और आनन्द कुमार गुप्ता थें । प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय पुरस्कार प्राप्त करने वालों के लिए परिषद् ने १००१, ७०१ तथा ५०१ की राशि के साथ हिन्दी साहित्य कि कुछ पुस्तकें प्रदान किया गया।

यह कार्यक्रम हिन्दी साहित्य परिषद् के अध्यक्ष श्री ओम प्रकाश सिकरिया की अध्यक्षता और संविधान सभा सदस्य श्री अजय चौरसिया के प्रमुख आतिथ्य में सम्पन्न हुआ । श्री चौरसिया ने प्रतिभागियो तथा उपस्थित सहृदयो को सम्बोधित करते हुए एक ओर तो बच्चो को प्रोत्साहित किया दूसरी ओर यह भी कहा कि आज देश में चारो ओर अराजकता कि स्थिति है इसके बावजुद इस तरह का साहित्यिक कार्यक्रम सन्तोष प्रदान करते हैं । धन्यवाद ज्ञापन करते हुए परिषद् के अध्यक्ष श्री सिकरिया जी ने कहा कि इस तरह के आयोजन बच्चो कि सृजनशीलता को बढावा देने के लिए महत्वपुर्ण हैं और भविष्य में भी ऐसे आयोजन करने की प्रतिवद्धता जतलाई । इस कार्यक्रमका सफल सञ्चालन प्रख्यात भोजपुरी, नेपाली एवं हिन्दी कवि गोपाल अश्क ने किया तथा कार्यक्रमका संयोजन कुमार सचिदानन्द के द्वारा हुआ ।

बचपन
(सुरम्या शुभम् -दिल्ली पब्लिक स्कूल, कक्षा १०)
(हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त रचना)

प्रफुल्लित हृदय है धरा का
और आ“खे रत्नारी
तरुवर झूम उठे मगन
किसलय ने मारी किलकारी ।
बादल घनेरे छाए है
रिमझिम फुहार है आई
पंख पसार नाच रहा मयूर
बचपन तेरी याद आई
नन्हे से बचपन की
आशायें भी नन्हीं थी
सारी दुनिया का निचोड
दादी और मम्मी का आंचल
बचपन कहु या गुलाब
दोनो लगता एक सा प्यारा
तितलियों को अपना कहूं
या परियो की कल्पना करे
दोनों ने मेरे बचपन को संवारा ।
कल की ही बात थी, जब
घूमती थी दादा जी की उंगली पकड,
कच्चे आम अमरुद जब तोडती
देते मेरे कान रगड ।
रोती - रोती मैं दादी की गोद मे समाती
उनकी शिकायत उनसे सुनाती ।
दादी मुझको चुप कराती
दादाजी को डांट पिलाती
सुन राहत मुझको आती ।
आज दादा का प्यार नही और दादी का दुलार नही
बचपन छूटा, वो भी छुटे, सहा जाता यह आघात नहीं ।
बचपन की हरियाली में
फूल हमारे परिजन थे
रंग-बिरंगी तितलियां हम सब
हंसता मेरे वन-उपवन थे ।
कैसे लिखूं मैं ये अनगिनत शब्द अनमोल
इस हृदय में बसे जाने कितने, मासूम मधुर बोल ।
हे विधाता १ दे दे मेरे पदों मे बचपन घोल ।
बचपन छुपा रहता है
हर इंसान के अन्तरमन में
प्रौढता ओढ बैठे रहते सब
पर जीता मन के कोमलत्तम में ।
गौरया के संग फुदकती, कबुतर को दाना चुगाती
कोयल संग कू कू करती, कटी पतंग देख चिल्लाती
फागुन की लाली से रंगित
बर्षा की बूंदे किलकारी और
कागज की नाव चलती देख, देती थी ताली
फिर क्यों कहते हो तुम मैं बचपन हूं हारी
रोम रोम मे भरा है बचपन
बचपन है मेरा सबसे प्यारा
किशोरवय अभिशाप नहीं जो
छीन ले मुझसे भोलापन सारा,
खण्ड-खण्ड हो मिट्टी में मिल कर
उग आउंगी बन गुलमोहर
बच्चों को लालीमा देकर
याद करुंगी गुजरा बचपन
पर सुनाऊं आपको बात एक दिन की

बिखरे बाल थरपराते होठ और
आंखो में आंसूओं की धार लिए
चल रहा था एक बचपन
बेबसी और लाचारी की मार लिए
तन की बांहो का घर लिए
भूखा पेट निस्तेज थी आंखे
दीनता का संसार लिए
फिर एक दिन -

ध्वनि पटी मेरे कानों में
काग की कर्कशता लिए,
चल धो बर्तन, लगा झाडू
उठ मैने देखा, उत्सुकता लिए
नन्हा बचपन था वह भी
निरक्षरता की मार लिए,
थर-थर कांप रहा था डर कर वह
झाडू व बर्तन हाथ लिए

मैं बिटिया आपकी, आप हमारे पालनहार
र्सार्थक कर दो इस बचपन को भी, आप है कुम्भकार ।
निश्छलता का नाम है बचपन
मासूमियत का पैगाम है बचपन
पाप - पुण्य से मुक्त रहे जो
वह प्रकृति का वरदान है बचपन ।


हिमालय
(राजेश्वरी चौधरी -त्रि-जुद्ध महावीर प्रसाद रघुविर राम मा विद्यालय, कक्षा १०)
(हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त रचना)

कितना अच्छा है हिमालय
सबसे ऊंचा ऊंचा है
शिव गौरीका वास है यह
देखो इतना अच्छा है ।

प्रकृति का अनमोल वरदान है यह
देखो कितना अचल - अटल
इस धरती की शान हिमालय
संकट का अभिज्ञान हिमालय ।

देता शीतल पवन हिमालय
सबको मोहित कर लेता
शीतल जल का अगस्र स्रोत यह
धरती को जीवन देता ।

कितना रमणीय है हिमालय
हमारे लिए गर्व की गाथा
सूरज की पहली किरणों से
हीरे की तरह चमक उठता ।

जब भी देखूं हंसता रहतार्
दर्द प्रदर्शन नही करता
खुशियों की सौगात लुटाकर
जड जगम का जीवन दाता ।


बचपन
(समसुल हक समानी -त्रि-जुद्ध महावीर प्रसाद रघुविर राम मा विद्यालय, कक्षा १०)
(हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार प्राप्त रचना)

कितना मासुम था वह बचपन मेरा,
याद आती है तो मुस्कुराता है मन मेरा ।

मां की ममता का मधुर छाव,
वे नन्हें - नन्हें हाथ पांव
दादी की वह मधुर लोरियां
मेरी नींद और किलकारियां
कितना सुनहरी था वह बचपन की शरारते,
आज भी है उनसे मेरी कुछ आदते ।
ओ दादा की अंगुलिया पकडकर चलना,
छोटी सी बातो पे रोना बिगडना ।
मेरी छोटी-छोटी गलतियों को
मुस्कुराकर नजर अन्दाज कर देना
और मुझे दुआवों भरे ढेर सारा प्यार देना ।
अपनी शरारतें से सबको हसाना,
बहुत याद आता है ओ गुजरा जमाना ।
ए काश मेरा वो बचपन लौट आए,
एक बार फिर से दादी मुझे लोरिया सुनाए ।
ना पर्ढाई कि चिन्ता ना परीक्षा कि गम,
सच कहे तो उस वक्त बहुत हि खुश थे हम ।
अपने ही दोस्तो से लडना झगडना,
जरा सी बातों पर ज्यादा बिगडना ।
बहुत याद आते है बचपन वे पल,
आज भी मचा देते है दिल मे हलचल ।।


बचपन
- नितेश कुमार तुलस्यान -पशुपति शिक्षा मन्दिर)
-हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में सान्त्वना पुरस्कार प्राप्त रचना)

बचपन के होते विविध रंग,
खेल कूद सब संग संग ।
हरपल हल लम्हा, एक नई उमंग,
दिल में रहती एक नई तरंग ।।

बचपन वो ऐसा श्याम रंग,
जिसमे पर चढता कोई रंग ।
बचपन आ“गन की किलकारी,
जिसे चाहती है दुनिया सारी ।।

बचपन न जाने रंग भेद,
बचपन न जाने श्याम श्वेत
बचपन न जाने जाति पाति,
बचपन न जाने पूण्य पाप ।।

बचपन ऐसी मीठी वाणी है
परिचित जिससे हर प्राणी है ।।
नए फूल खिले है बचपन में,
संजोए उसे हम निज मन में ।।

मा“ के आचल में गुजरती,
बचपन की शरारते सारी ।
तभी तो मा“ है कहलाती,
इस दुनिया में सब से प्यारी ।।

मुग्ध हो बच्चो के भोलेपन पर,
आसमान झुक जाता है
मोती रुपी बारिश को सिर्फ
उनके लिए बरसाता है ।।

मत रोको नन्हें हाथों को
आगे बढने से सतप्त,
जो तोडना जाहे अम्बर से
मीठे मानस फल महत ।

आजो हम सब मिलकर
अपने बचपन को याद करे,
हम सब आपस में मिलजुल कर
कुछ मीठी मीठी बात करें ।




हिमालय
- संतोष ठाकुर -पशुपति शिक्षा मन्दिर)
-हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में सान्त्वना पुरस्कार प्राप्त रचना)

जय हिमाल जय नेपाल
तेरी महिमा है महान

आज हिमाल की चोटी पर भोले ने कर दिया कमाल
आज पुजारी बदल बदल कर प्रचण्डने बनाया नया“ नेपाल

शिव शंकरको बन्धक रख कर फेका राजनीतिका जाल
देवी देवता खुश हो कैसे जहा“ विचार हो कंगाल

जहा“ सरकारकी रज्जत न होती प्रजा मे होता रोज बबाल
दैनिक लोड सेडिङ्ग का कारण सूख गए यहा“ के ताल

कल विश्वमें हिमाल का नाम लेते थे गर्व के साथ
पशुपतिनाथ जहा“ बसते हैं, वह है मेरा प्यारा हिमाल


बचपन
- शिवानी शाह -दिल्ली पब्लिक स्कूल, कक्षा ८)
-हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में सान्त्वना पुरस्कार प्राप्त रचना)

कुछ अन्जानी कुछ पहचानी,
याद आ रही मुझको फिर से ।
मेरे बचपन की एक कहानी,
जिसको सुना रही आज मै अपनी जुवानी ।।

बचपन मे थी मेरी आदत,
रोज कहानी सुनने की
जैसे ही मा“ थपकी देती,
मै मा“ से पूछ लेती ।।
क्या आज राज कुमार आएगा
कैसा होगा वह राज कुमार
फिर क्या होगा उसके वाद -

तब मा“ कहती -
रवि सा वह उज्जवल होगा,
सोम सा वह सुन्दर होगा
गुलाबों के फूलो सा वह कोमल
सफेद घोडा पर आएगा
और तुझे ले जाएगा

मैने उत्सुकता से पूछा
क्या मुझे ले जाएगा अपने साथ १
मा“ फिर क्या होगा उसके बाद -

फिर अंबर के ये नक्षत्र सुन्दर सुन्दर
एक-एक कर उतर-उतर
बारी-बारी से, तेरे शिशु बनकर
मेरे घर आए“गे उसेके बाद .............।

मेरे नए खिलौने लेकर
चले न जाए“ वे अपने घर
इस चिन्ता मे व्याकुल होकर
मै बिस्तर पर बैठ गई
और फिर झटके से निचे उतर गई
मा“ मेरे इरादे भा“पकर धीरे से मुस्काई
मै अपने बिखरे खिलौने समेटकर
अलमारी मे उनको रखकर, मा“ के साडी से ढककर
दौड कमरे का दरबाजा और खिडकिया बंद कर आई
अब - जब मै हो गई सयानी
सुनकर अपने बचपन की ये कहानी
मै थोडा-सी शरमाई, फिर धीरे से मुस्काई ।।
बचपन
- अनिता ठाकुर
-हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में सान्त्वना पुरस्कार प्राप्त रचना)

रुठते मनाते दिन गए बचपन जब मैं थी नादान ।
पढने लिखने स्कूल गई तो मिला गुरुजनों का प्यारा ।।
गुरु जनो की शिक्षा ने दिया मुझ में संस्कार
इसलिए उनको मैं करती कोटि कोटि प्रमाण ।।

मेरा बचपन कैसा था मै आज बताना चाहती ह“ू
आप सबके सामने मै प्रस्तुत करना चाहती हू“ ।
मेरे बचपन ठीक रहा बढ गई ममी, पापा का सामने ।
मेरी घर की खुुसी की खातिर पर््रार्थना की भगवान के सामने ।।

बहुत दिन बचपन रही और मैं हो गई स्वाभीमानी ।
सारे जीवन मे कभी हो ना मुझे परेशानी ।
बचपन की बात है जब मै ममी पापा से रुठ गई थी
उसी वक्त पापा आ गये जब मैं सो गई थी ।
बचपन मे मुझ से बहुत भूल हर्ुइ थी ।
भगवान को भी मुझसे तकलीफ न हर्ुइ थी ।
बचपन मे मेरा एक सपना था ।
पढ-लिख कर कोई काम करना यही भगवान से पर््रार्थना थी ।।
मेरे ममी पापा मुझे बहुत समझाते थे
कोई तकलीफ मे भी ओ मुझे नहीं रुलाते थे ।
र्स्वर्ग जैसा घर मेरा उसमे मै रहती थी हरदम
कभी इस घरको नजर न लगे मनाती थी हरदम ।
भगवान से मैं करती हू हरदम यही दुआ ।
मुझे बनादे जिन्दगी भर कामयाब ।।
इस भरी दुनिया मे करु मैं ऐसा काम ।
जिससे मेरे पापा का हो बहुत नाम ।।


बचपन
(आनन्द कुमार गुप्ता -श्री नृसिंह माध्यमिक विद्यालय, पिपरा)
(हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में सान्त्वना पुरस्कार प्राप्त रचना)

जन्म देती हैं माता
कर्म देते हैं पिता
शिक्षा देते हंै गुरु
तब पढना करते हैं शुरु

संस्कार से जीवन चलता है
तब जीवन र्स्वर्ग बनता है
कुसंस्कार से जीवन थमती
तब जीवन नही बनती है ।

हे ! माता पिता आपने मुझे जन्म दे कर
बडा आपने किया है, दूध भात खिलाकर
नमक रोटी आपने खायी
मुझे मखमल पर सुलाकर

अगर कहीं मुझे खरोंच आए तो
दर्द होता है आपको
जब मै सम्मान पाउ तो
फक्र होता है आपको

जन्म दिए है आपने तो
मुझे ना भुलाना
यदि भुला भी जाउं तो
याद करना मेरा गाना

हमारा रोना देखकर
माता भी रोने लगती है
हमारा दर्द देखकर
वह कुछ भी कर सकती है ।

पिता रात रात मिहनत करते
हमे बहुत पढाने के लिए
माता लोरी सुनाती है
हमे सुलाने के लिए

जन्म देती है मातार्
कर्म देती है पिता
शिक्षा देते है गुरु
तब पढना करते हैं शुरु ।

हिमालय
- निशिता कुमारी -दिल्ली पव्लिक स्कूल, कक्षा ८)
-हिन्दी बाल-कविता प्रतियोगिता में पुरस्कार प्राप्त रचना)
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पर्वत राज हिमालय, जिस पर शिव का रहा बसेरा
पार्वती का पिता जानकर, शिव ने डाला डेरा
मन मोहिनी प्रकृति ने, जिसका मन भावन रुप उकेरा
वो शैलराज है मेरा, वो शैलराज है मेरा ।

झर-झर झरते झरने, मानो गुणगान कर रहे है
नीख नभ के शांत हृदय को, रोमांचितदेर रहे है ।
उंचे-उंचे वृक्ष मानो, मौन निमन्त्रण दे रहे है,
कलख करते पक्षी उड-उड कर विहंस रहे है
इस लिए यस शैल शिरोमणि प्रभु का रहा बसेरा
ये शैलराज है मेरा, ये शैलराज है मेरा
हिम मंडित शैलराज मानो मणिं जडा मुकुट हो
लगता जैसे पार्वती साक्षात सामने खडी हो ।
यह अप्रतिम सौर्न्दर्य देखने, मौसम करता फिर-फिर फेरा
वो शैलराज है मेरा, वो शैलराज है मेरा ।

नदियां जहां से सुधा की धारा वहा रही है,
मानो अनेक रागों की स्वर-लहरी बजा रही है ।
ये निधियां हिमालय राज की, मन को हर्षा रही है,
ये अप्सराएं शैलराज की, इन्द्र की अप्सराओं को जला हरी है

फिर शैल शिरोमणि ने मानो, आनन्दोत्सव सा छेडा
वो शैलराज है मेरा, वो शैलराज है मेरा ।