Friday, September 26, 2008

पर्वतों की ओट में

जाने कब जाने का पैगाम आ जाए
- गोपाल अश्क

जाने कब जाने का पैगाम आ जाए
जिन्दगी की आखिरी शाम आ जाए

मत करो तुम दुश्मनी यहां किसी सो भी
क्या पता किस मोड पे कौन काम आ जाए

मत रुको चलते रहो चलना ही तो है सफर
क्या पता तुमसे मिलने खुद मुकाम आ जाए

मत देखो तुम राह जीने की जीते ही रहो
क्या पता कब मौत ही खुलेआम आ जाए

बच के रहो तुम यहां अपने ख्यालों से अश्क
क्या पता किस जुर्म में तेरा नाम आ जाए


लिखूंगा नव गीत लिखुंगा
-गोपाल अश्क

लिखूंगा, नव गीत लिखूंगा
वर्तमान और अतीत लिखूंगा

जहां चाहे जितना भी दर्द दे
पर हंसकर प्रीत लिखूंगा

क्या हारने की बातें करते हो
एक ना एक दिन जीत लिखूंगा

सागर में खोना नियति है
नदी की वफा-रित लिखूंगा

गम न करो अश्क अपनी भी
एक एक बात मीत लिखूंगा

Tuesday, August 12, 2008

नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद् द्वारा तुलसी जयंती मनाई गई


बीरगंज (नेपाल) ८ अगस्त । आज तुलसी जयंती के पावन अवसर पर नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद् द्वारा भव्य रुप से तुलसी जयंती मनाई गई । कार्यक्रम में प्रमुख अतिथी श्री विश्वनाथ साह थे । एवं मुख्य प्रवचन कर्ता मानस मर्मज्ञ विद्वान प्रो. रामाश्रय प्रसाद सिंह (अवकाश प्राप्त अध्यक्ष हिन्दी विभाग) एम एस कालेज मोतिहारी (भारत) से पधारे थे । कार्यक्रम का प्रारंभ द्वीप प्रज्वलन से हुआ । श्री रामचन्द्र कृपालु भजमन के सस्वर मधुर गायन से कार्यक्रम की शुरुवात की गई ।

स्वागत भाषण करते हुए ठाकुर राम क्याम्पस के हिन्दी के प्राध्यायपक प्रो. सचिच्दानन्द सिंह ने बडे ही सारगर्मित शब्दों में बिषय को रखा । राम चरित मानस हिन्दी के विकास मे इसका बडा योगदान रहा है और रहेगा । नेपाल में हिन्दी के सर्न्दर्भ में बोलते हुए बडी साफगोई से कहा कि हिन्दी को राजकीय मान्यता मिले न मिल, संविधान में स्थान मिले न मिले, हिन्दी तो पुरे नेपाल की उसके हृदयों को जोडने वाली भाषा है और रहेगी । इसे कोई मिटा नहीं सकता, वास्तव में यह नेपाल की राष्ट्रभाषा भले ही न हो लेकिन राष्ट्रिय संवाद की भाषा है । इसे झुठलाना नहीं चाहिए । हिन्दी राजकीय मान्यता की मोहताज नहीं है । यह स्वयं विकसित विस्तारित होती रहेगी।

इसके पश्चात मधुकरकंठी कवि श्री राम पुकार सिंह तुलसी रचित भजन का मीठे स्वर में गायन कर श्रोताओं को बांधने में पुरी तरह सफल रहे । श्री इन्द्रदेव कुवंर ने जिंदगी मौत से बेहतर लगी कविता पढकर वाह वाही लुटी ।

तुलसी जयंती के इस उपलक्ष्य पर मोतिहारी से आए मानस मर्मज्ञ रामायण को समर्पित व्यक्तित्व प्रा. रामश्रय प्रसाद सिंह ने ८० के होते हुए भी बडी ओजपुर्णॅ और खोजपुर्ण व्याख्या से श्रोताओ के हृदय में सीधे प्रविष्ट कर गए । उन्होने कहा कि संत तुलसी दास ने राम चरित मानस की रचना की, राम चरित्र मानस की नहीं । क्योंकि चरित में सर्वोगपुर्ण वर्णन होता है । साहित्य और संस्कृति के समाप्त होने से राष्ट्र समाप्त हो जाता है । ५०० बर्षो के बाद श्री तुलसी अमर है । तुलसी दास जी १२ ग्रन्थो की मुख्य रुप से रचना की । आज की मनोदशा का यथार्थ चित्र उन्होने उसी समय खींचा था । आज सज्जन चिंताग्रस्त है, लेकिन खल कुटिल हंसी हंस रहा है ।

उन्होने कहा कि रामायण बडे बूढों के लिए नहीं बल्कि युवाओं के लिए है । एक उदाहरण देते हुए समझाया की रेल्वे स्टेशन पर एक बुजुर्ग रामचरित पढ रहे थे । एक युवा दम्पति ने व्यंगपुर्णॅ लहजे मे कहा की यह कोई स्टेशन पर पढने की चीज है । कुछ देर बाद ट्रेन मे उस युवक को चिल्लाते देख उन्होन कारण पुछा तो उसने बताया की उनकी पत्नी स्टेशन पर ही छुट गई है । इस पर बुजुर्ग ने कहा की अगर रामचरित पढते तो एसा न होता । फिर उनहोने एक चौपाई दिखाई जिसमे लिखा था ....प्रिया चढाई चढे रघुराई....। यानी रामचन्द्र्जी पत्नी को चढा कर फिर खुद चढे ।

उन्होने बल देकर कहा कि विनय पत्रिका का ५६, ५७ और ५८ वें पद का पठन होना चाहिए । यह रामायण की कुंजी है । संसार के प्रति मोह का प्रतीक रावण है । दशाशीष मोह का प्रतीक है । कुभंकर्ण अहंकार का प्रतीक है । मेंघनाद काम का प्रतीक है । इसी प्रकार राम ज्ञान के, लक्ष्मण वैराग्य के और सीता भक्ति की प्रतीक है । उन्होने कहा की भक्ती तो मात समान है । वैराग्य और ज्ञान इसके पुत्र है ।

मानस के दैनिक पाठ का उन्होने आग्रह किया । उन्होने मानस की व्याख्या करते हुए कहा कि इसमे तीन बडा महत्व है । तीन नगर है, जनकपुर विदेह ज्ञान का अयोध्या व्यवहार का क्षेत्र और लंका देह भौतिकता का क्षेत्र है । मानस की तीन नारियो का उल्लेख करते हुए बताया कि ये कौशल्या, सुमित्रा और कैकैयी । मंथरा लोभ, शर्ुपर्नखा काम और ताडका क्रोध का प्रतिनिधित्व करती है । काम क्रोध लोभ ने संसार को वश में कर रखा है । राम ने पहला बध क्रोध ताडका का किया, जैसे कृष्ण ने पूतना का किया । मंथरा लोभ का प्रतीक है । अतः लोभ नियंत्रित हो । शुपर्नखा के बडे बडे नख थे जो कि काम का उपादान है । अतः नख काटने का चलन है । नाक और कान भी वासना के उपादान है । अतः उसके नाक और कान काटे गए ।

तुलसी दास ने आम लोगो को मनोगत की बात कही है । वशिष्ट के द्वारा निषाद का अभिवादन राम निषाद मिलन, सबरी के जुठे बैर खाना यह समाजिक भेदभाव को मिटाकर समरसता प्रेम सदभाव निर्माण करने का हेतु तुलसी का था । उन्होने स्पष्ट कहा कि रामायण तो एक सेतु की तरह है जो खाई को पाटता भी है और जोडता भी । तुलसी का व्यक्तित्व सेतु व्यक्तित्व है । शासको एवं नेताओं को सेतु समान व्यक्तित्व वाला होना चाहिए । राम ने केवल दिया । आज की तरह केवल लेने वाला नेता नहीं थे । अंत में उन्होने कहा कि आज वास्तव में चरित्र में बदलाव की आवश्यकता है ।

कार्यक्रम के अंतिम चरण में रक्सौल के कवि ब्रजेश लटपट ने "हिन्द और नैपाल की पहचान है तुलसी" कविता खूब सराही गई । गोपाल अश्क ने गजल और लाला माघवेन्द्र ने रामविवाह प्रसंग एवं कविता पाठ किया । सतीश सजल ने भी कविता पाठ किया । कार्यक्रम समापन में मुख्य अतिथी श्री विश्वनाथ साह ने संबोधित किया । कमलेश त्रिपाठी ने भी अंतिम समय में कविता वाचन किया । धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी साहित्य परिषद् के अध्यक्ष ओम प्रकाश सिकारिया ने किया । उन्होने कहा कि तुलसी के काल मे बडे बडे सेठ और राजा रहे होगे लेकिन ५०० साल बाद संत तुलसी की जयंती मनाई जा रही है । अतः ५०० साल बाद भी आज के किसी अपरिग्रही संत की जयंती मनाई जाएगी न की किसी नेता या धनवान की ।

Tuesday, July 22, 2008

वीरगंज में हास्य-कवि सम्मेलन

बीरगंज (नेपाल) १५ मार्च । नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद्, वीरगंज होली के अवसर पर एक हास्य कवि सम्मेलन का भव्य एवं सफल आयोजन १६ मार्च को वीरगंज उद्योग बाणिज्य संघ के सभाकक्ष में किया । इस कार्यक्रम का सभापतित्व परिषद् के अध्यक्ष श्री ओम प्रकाश सिकारिया ने किया जबकि मुख्य अतिथि त्रिभुवन विश्वविद्यालय केन्द्रीय हिन्दी विभाग के भूतपुर्व अध्यक्ष एवं रचनाकार डा. सुर्ययदेव सिंह प्रभाकर थे । श्री प्रभाकर उम्र के ऐसे पडाव पर है जहां शरीर के अंगो पर व्यक्ति का पुरा नियन्त्रण नहीं रह पाता, इसके बावजूद उन्होने न केवल अपनी उपस्थिती दी बल्कि आद्योपान्त कार्यक्रम का आनन्द भी लिया और उपस्थित श्रोताओं को सम्बोधित भी किया ।

इस हास्य कवि सम्मेलन के उद्घाटन एवं समापन सत्र का संचालन परिषद् के सचिव एवं युवा गीतकार सतीशचन्द्र झा "सजल" ने किया जबकि कविता वाचन सत्र का संचालन प्रख्यात लटपट ब्रजेश ने किया । कार्यक्रम का प्रारम्भ गोरख मस्ताना के हिन्दी और भोजपुरी मुक्तकों से हुआ । उन्होंने महान व्यक्तित्वों के विस्मरण एवं उपेक्षा पर व्यंग्य किया और अपनी व्यंगयोंक्तियों से श्रोताओं का भरपुर मनोरंजन किया । जगलकार जय प्रकाश पुष्प ने नेपाल की वर्तमान अवस्था को महाराष्ट्र के प्रसंग से जोडते हुए सीमांचल के राजनैतिक यथार्थ का चित्रण किया । इन्द्रदेव कुंवर ने बृद्ध माता पिता की बर्तमान परिवार में विवशतापुर्ण अवस्था की झलक प्रस्तुत की और रहम को बुढापे की विवशता के रुप में चित्रित कर श्रोताओं को प्रभावित किया । प्रसाद रत्नेश्वर ने एक ओर अपनी छोटी-छोटी व्यंगोक्तियों से लोगों को गुदगुदाया । खादी ग्रामोद्योग पर गम्भीरता पुर्वक टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि खादी वस्त्र नहीं एक विचार है, इसलिए यस उद्योग बिमार है ।

उनके अतिरिक्त इस कार्यक्रम में संतोष दिवाकर, सुधीर झा, ललन प्रसाद नलिन, धर्मेन्द्र भट्टर्राई, गोपाल अश्क, पूनम झा, रामस्वार्थ ठाकुर, धनुषधारी कुशवाहा ने अपनी हास्यपरक कविताओं से श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया । स्थानीय कवि लाला माधवेन्द्र ने अपनी हास्यपरक कविता "मछली रानी" की अभिनयात्मक प्रस्तुति से लोगों को मंत्र-मुग्ध कर दिया ।

इस कार्यक्रम का र्सवाधिक आकर्षा "हिन्द युग्म डाट कम" (इन्टरनेट मैगजिन) दिल्ली से पधारे युवा व्यंग्यकार भूपेन्द्र राघव और हिन्दी के चर्चित गीतकार, व्यंग्यकार और राष्ट्रीय मंच संचालक डा". कृष्णावतार राही थे । श्री राघव ने अपने छोटे-छोटे व्यंग्यात्मक मुक्तकों से श्रोताओं को प्रभावित किया और डा". राही ने लगभग एक घंटे तक पूरे सभाकक्ष को हास्य की फुहार में भीगकर खुद ही खोने के लिए विवश कर दिया । उनके व्यंग्य का बिषय राजनीति के साथ-साथ आधूनिक युग की महिलाएं बनी और बिशेषता यह कि कार्यक्रम में सहभागी दोनों ही वर्ग के लोग तालियां पीटते देखे गए । इस कार्यक्रम का संयोजन कुमार सच्चिदानंद ने किया ।

यस कवि सम्मेलन अनेक अर्थो में खास था क्योंकि इसके लिए श्रोत और संसाधन जुटाने का कार्य परिषद् ने अपने बलबूते पर किया और सीमित स्रोत तथा संसाधन के बावजुद स्थानीय रचनाकारों के साथ-साथ दूर-दराज के रचनाकारों भी इसमें सहभागिता करायी गयी । इस कार्यक्रम में श्रोताओं की व्यापक सहभागिता थी और लगभग पाँच घंटे तक उन्होंने हास्य और व्यंग्य के तेज छीटों का आनन्द लिया । यस कार्यक्रम इसलिए भी रेखांकनीय रहा क्योंकि इसमें शहर के आम लोगों के साथ-साथ विभिन्न वर्गो के विशिष्ट व्यक्तियों की उपस्थिति रही ।

इस कार्यक्रम के साथ सबसे बडी विडम्बना यह घंटित हुइ कि स्थानीय एवं राष्ट्रीय नेपाली संचार माध्यमों के प्रतिनिधियों को औपचारिक सूचना एवं निमंत्रण के बावजूद दोनों ही स्तरों पर इस कार्यक्रम को तरजीह नहीं दिया गया । शायद इसलिए क्योंकि यस हिन्दी का कार्यक्रम था । स्थानीय स्तर पर प्रशासन के आला अधिकारियों को भी निमंत्रित किया गया लेकिन उनकी भी उपस्थिति नगण्य थी और निमंत्रण के बावजूद हिन्दी के नाम पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजक बने भारतीय वाणिज्य महादूतावास वीरगंज से भी किसी का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया था ।

कुल मिलाकर वीरगंज में यस साहित्यिक आयोजन चर्चा का बिषय रहा । हिन्दी के इस मंच पर भोजपुरी और मैथिली की भी रचनाएं पढी गयी । इसके माध्यम से नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद् ने नेपाल में नागरी लिपि प्रयोग करने वाली भाषाओं के बीच सुमधुर सेतु के निर्माण की दिशा में महत्वपुर्ण कार्य किया और नेपाल में हिन्दी के प्रति टूटी-बिखरी संवेदना को संग्रहित करने की दिशा में एक महत्वपुर्ण कदम बढाया । (साभार: हिमालिनी)

Sunday, July 20, 2008

बीरगंज मे बाल कविता प्रतियोगिता सम्पन्न

बीरगंज जनवरी १२ । नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद कक्षा ८ से १० तक के विधार्थीयों का पर्सा जिल्ला स्तरीय बाल कविता प्रतियोगिता आयोजना कराया । उधोग बाणिज्य संध हल मे आयोजित उक्त प्रतियोगिता में विभिन्न स्कुल के २१ विधार्थीयों ने भाग लिया । उक्त प्रतियोगिता मे प्रथम पुरस्कार दिल्ली पब्लीक स्कुल की सुरम्या शुभम ने प्राप्त किया, द्धितिय पुरस्कार डिएभी पब्लीक स्कुल की ऐश्वर्या भट्ट तथा तृतीय पुरस्कार दिल्ली पब्लीक स्कुल की आसियाना ने प्राप्त किया । अंशुमन आलोक, लक्की कुमारी (सेंटजेवीयर स्कुल), सुकन्या, निकीता क्याल (डिएभी पब्लीक स्कुल), बेबी र्सराफ (नेपाल रेल्वे मा वि), बिरेन्द्र कुमार मिश्र (महानन्द प्रसाद उ मा वि) तथा ज्योति शर्मा (माइस्थान विधापीठ) ने सान्तावना पुरस्कार प्राप्त किया । कार्यक्रम मे वरिष्ठ कवि इन्द्रदेव सिंह, डा० लटपट ब्रजेश, डा० विशम्भर शर्मा, चन्द्रकिशोर झा, गोपाल अश्क आदि नै शुभकामना देते हुए कविता पाठ किया । कार्यक्रम का सभापतित्व परिषद के अध्यक्ष ओमप्रकाश सिकरिया तथा संचालन सतिश चन्द्र सजल जी ने किया । छात्र छात्राओं की कविता लेखन प्रतिभा खोज कर प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उक्त कार्यक्रम आयोजित किया गया । मेरा देश, माँ एवम शरद ऋतु समेत तीन विषयों पर बालको की भावना कविता मे सुन कर श्रोतागण मुग्ध हो गए थें 

Saturday, July 19, 2008

नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद - एक परिचय


नेपाल कें अधिकांश क्षेत्र मे हिन्दी आम भाषा की तरह बोली जाती है और बहुसंख्य लोग हिन्दी बोल या समझ सकते है । इसके बावजूद हिन्दी का विकास यहाँ एक बोलचाल की भाषा के रुप में मात्र रहा है । ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, संस्कृति और कला की समृद्ध भाषा के रुप में जो सम्मान उसे मिलना चाहिए था वह नही मिल पाया । इन परिस्थितियो को देखते हुए, हिन्दी, भोजपुरी तथा संस्कृत के मनीषी एवं लेखक पँ. दीप नारायण मिश्र जी ने वि.सं. २०५० में नेपाल हिन्दी साहित्य परिष्द का गठन किया तथा यह संस्था सतत् रुप से हिन्दी के विकास के लिए काम कर रही है । इस संस्था का औपचारिक पंजीकरण वि.सं. २०५८ साल वैशाख २ गते के दिन सम्पन्न हुआ ।

नेपाल की अधिकांश भाषाएँ देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करती है । इस नाते सभी भाषाओं के बीच सुमधुर सम्बन्ध-सेतु बनाने की आवश्यकता है । सभी भाषाएँ परस्पर सहयोग से ही विकसित हो सकती है । हिन्दी अपनी भाषिक विशेषताओं, सरलता, सहजता, शाब्दिक उदारता और साहित्यिक समृद्धि के कारण सारे विश्व मे निरन्तर लोकप्रिय हो रही है । हिन्दी की इस व्यापकता और विशालता के पीछे विश्वभर मे फैले हिन्दी भाषीओं का महत्वपुर्ण योगदान है । शायद ही विश्व का कोई देश हो, जहाँ कोई हिन्दी भाषी या हिन्दी प्रेमी न हो । हिन्दी सही मायने मे विश्व भाषा बनने की ओर अग्रसर है । लेकिन यह यात्रा चूनौतियों से भरी है । मौजूदा चुनौतियों का व्यावहारिक समाधान ढुंढने तथा समय सापेक्ष गतिशीलता एवं विकास के लिए नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद् कृतसंकल्प है ।

नियमित कार्यक्रम
१) तुलसी जयन्ती के अवसर पर प्रवचन एवं कवि गोष्ठी का आयोजन ।
२) बुद्ध जयन्ती के अवसर पर प्रवचन एवं कवि गोष्ठी का आयोजन ।
३) सूरदास एवं मीरा जयन्ती के अवसर पर कार्यक्रम आयोजन ।
४) होली के अवसर पर बसन्तोत्सव का आयोजन ।
५) नेपाल एवं सीमावर्ती क्षेत्र के हिन्दी साहित्यकारो को सम्मानित करना ।

भावी योजना
१) नेपाली भाषा के सहित्य को हिन्दी भाषा मे तथा हिन्दी भाषा के साहित्य को नेपाली भाषा मे अनुवादित एवं प्रकाशित करना ।
२) नेपाल की देवनागरी लिपि प्रयोग करने वाली भाषाओ के बीच सुमधुर सम्बन्ध निर्माण करना ।
३) देवनागरी लिपि के कम्प्युटर प्रयोग को प्रोत्साहित करना तथा सहज बनाना ।
४) हिन्दी भाषा के साहित्य के माध्यम से देश की संस्कृति का संरक्षण एवं सर्म्बर्द्धन करना ।
५) हिन्दी प्रेमीयों के लिए कवि सम्मेलन, गोष्ठी एवं अन्य साँस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना ।
६) नेपाल के हिन्दी भाषा के विद्वान महानुभावो को सम्मानित एवं पुरस्कृत कर प्रोत्साहित करना ।
७) पुस्तकालय एवं विद्यालयांे को हिन्दी साहित्य एवं ज्ञान-विज्ञान की पुस्तके उपलब्ध करवाना ।
८) हिन्दी भाषा एवं साहित्य के शिक्षण एवं विकास से सम्बन्धित देशी विदेशी संस्थाओ के साथ सम्बन्ध स्थापित कर उनके कार्यो मे सहयोग एवं समन्वय करना ।
९) इन्टरनेट पर वेभपृष्ठ बनाकर हिन्दी साहित्य को र्सवसुलभ बनाना तथा सामान्य जनों को शौकिया लेखन कार्य के लिए प्रोत्साहित करना ।
१०) नेपाल से हिन्दी भाषा के विद्वानो एवं भाषा सेवी व्यक्तियो को देश विदेश मे आयोजित होने वाले सम्मेलन एवं कार्यक्रम मे भाग लेने का प्रबन्ध करना ।
११) हिन्दी विषय के पठन पाठन के लिए छात्रो एवं शिक्षण संस्थाओ को प्रेरित एवं प्रोत्साहित करना
१२) छात्र-छात्राओ के बीच हिन्दी भाषा मे निबन्ध, प्रवचन एवं काव्य लेखन प्रतियोगिता का आयोजन
१३) हिन्दी भाषा साहित्य के अग्रणी रचनाकारो, लेखको तथा कवियो को आमन्त्रित कर गोष्ठी आयोजन करना ।

नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद्
केन्द्रीय कार्यालय,
पो.ब.नं. २६,
बीरगंज - नेपाल